जो कर्मभूमि से हुए निष्कासित
वो भू तला ढकेलते
जब चल रहे थे
मर रहे थे
कुछ कट गए थे पटरी पे
कुछ जल गए बिन लकड़ी के
पर भूखे प्यासे तपते शायद
गिर पड़े थे आंकड़े
ना मिल सके वो आंकड़े।
जब बात चली थी सत्ता की
और विभाजित जनता की
मेरे राज्य की रैली में
हुंकार रहे थे आंकड़े
दहाड़ रहे थे आंकड़े।
जिन हाथों की रोटी खाई
उनपे ही लाठी बरसाई
पर कहते हम तो आय बढ़ाते
छुप के हंसते आंकड़े।
ये बिना बेड के अस्पताल
हांफते फिरते नौजवान
बेरोजगारी की चप्पलों में
ललकार रहे थे आंकड़े।
अब वोटों की थी बारी आई
फिर अस्पतालों के दौरे हुए
और रोजगार के सौदे हुए
झुग्गियों में जा जा के
शेखी बघारते आंकड़े।
एक बटी हुई सी जनता थी
और बांटने वाली सत्ता थी
फिर जातिवाद पे ठप्पा लगा
फिर सिर पटकते आंकड़े!
वो भू तला ढकेलते
जब चल रहे थे
मर रहे थे
कुछ कट गए थे पटरी पे
कुछ जल गए बिन लकड़ी के
पर भूखे प्यासे तपते शायद
गिर पड़े थे आंकड़े
ना मिल सके वो आंकड़े।
जब बात चली थी सत्ता की
और विभाजित जनता की
मेरे राज्य की रैली में
हुंकार रहे थे आंकड़े
दहाड़ रहे थे आंकड़े।
जिन हाथों की रोटी खाई
उनपे ही लाठी बरसाई
पर कहते हम तो आय बढ़ाते
छुप के हंसते आंकड़े।
ये बिना बेड के अस्पताल
हांफते फिरते नौजवान
बेरोजगारी की चप्पलों में
ललकार रहे थे आंकड़े।
अब वोटों की थी बारी आई
फिर अस्पतालों के दौरे हुए
और रोजगार के सौदे हुए
झुग्गियों में जा जा के
शेखी बघारते आंकड़े।
एक बटी हुई सी जनता थी
और बांटने वाली सत्ता थी
फिर जातिवाद पे ठप्पा लगा
फिर सिर पटकते आंकड़े!
Last Edit - Sept. 20, 2020, 1 p.m.